अलैंगिक जनन वह इसके प्रकार

सभी जीव अपने वंशानुक्रम को बढ़ाने के लिए जनन करते हैं यह जनन दो प्रकार की विधियों से संपन्न होता है

  1. अलैंगिक जनन
   2 .लैंगिक जनन
तो इस लेख में हम अलैंगिक जनन के बारे में विस्तृत अध्ययन करेंगे

अलैंगिक जनन  की विधियां----
विखंडन-
एककोशिक जीवों जैसे जीवाणु तथा प्रोटोजोआ की कोशिका , कोशिका विभाजन द्वारा सामान्यतः दो बराबर भागों में विभक्त हो जाती हैं ।अमीबा जैसे जीवो में कोशिका विभाजन किसी भी तल से हो सकता है ,परंतु कुछ एक कोशिक जीवो में शारीरिक संरचना अधिक संगठित होती है उदाहरणतः कालाजार के रोगाणु, लेस्मनिया मैं कोशिका के एक सिरे पर कोड़े के समान सूक्ष्म सरचना  होते हैं ऐसे में विखंडन एक निर्धारित तल से होता है ।मलेरिया परजीवी प्लाज्मोडियम जैसे अन्य एककोशिक एक साथ अनेक संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाते हैं , जिसे बहुखंडन कहते हैं|


खंडन--
सरल सरचना वाले बहुकोशिक जीवो में जनन की सरल विधि कार्य करती हैं ।उदाहरणतः स्पाइरोगाइरा सामान्यतः विकसित होकर छोटे-छोटे टुकड़ों में खंडित हो जाता है ,यह टुकड़े अथवा खंड वृद्धि करने जीव में विकसित हो जाते हैं, परंतु यह सभी बहुकोशिक जीवो के लिए सत्य नहीं है ,वे सरल रूप से कोशिका- दर -कोशिका विभाजित नहीं होते हैं ।इसका कारण है की अधिकतर बहु कोशिक जीव कोशिकाओं का समूह मात्र ही नहीं है, वरन् विशेष कार्य हेतु विशिष्ट कोशिकाएं संगठित होकर उत्तक का निर्माण करते हैं तथा उत्तक संगठित होकर अंग बनाते हैं, शरीर में इसकी स्थिति भी निश्चित होती हैं ऐसी सजग व्यवस्थित परिस्थिति में कोशिका दर कोशिका विभाजन अव्यवहारिक हैं अतः बहू कोशिक जीवो को जनन करने के लिए अपेक्षाकृत अधिक जटिल विधि की आवश्यकता होती है।


पुनरुदभवन---
पूर्णरूपेण विभेदित जीवो में अपने कायिक भाग से नए जीव के निर्माण की क्षमता होती है, अर्थात यदि किसी कारणवश जीव क्षत विक्षत हो जाता है अथवा कुछ टुकड़ों में टूट जाता है तो इसके अनेक टुकड़े वृद्धि कर ने जीव में विकसित हो जाते हैं ।उदाहरणतः हाइड्रा तथा प्लेनेरिया जैसे सरल प्राणियों को यदि कई टुकड़ों में काट दिया जाए तो प्रत्येक टुकड़ा विकसित होकर पूर्ण जीव का निर्माण कर देता है यह पुनरुदभवन कहलाता है।

मुकुलन----
हाइड्रा जैसे कुछ प्राणी पुनर्जनन की क्षमता वाली कोशिकाओं का उपयोग मुकुलन के लिए करते हैं, हाइड्रा में कोशिकाओं के नियमित विभाजन के कारण एक स्थान पर उभार विकसित हो जाता है यह उभार वृद्धि करता हुआ नन्हे जीव में बदल जाता है तथा पूर्ण विकसित होकर जनक से अलग होकर स्वतंत्र जीव बन जाता है।

 
कायिक प्रवर्धन---
ऐसे बहुत से पौधे हैं जिनमें कुछ भाग जैसे जड़ तना तथा पत्तियां उपयुक्त परिस्थितियों में विकसित होकर नया पौधा उत्पन्न करते हैं ,अधिकतर जंतुओं के विपरीत एकल पौधे इस क्षमता का उपयोग जनन की विधि के रूप में करते हैं , परतन, कलम अथवा रोपण जैसी कायिक प्रवर्धन की तकनीक का उपयोग कृषि क्षेत्र में भी किया जाता है। गन्ना गुलाब अथवा अंगूर इसके कुछ उदाहरण है इसी प्रकार ब्रायोफिलम की पत्तियों की कोर पर कुछ कलिका विकसित होकर मृदा में गिर जाती हैं तथा नए पौधे में विकसित हो जाती हैं।


बीजाणु समासंघ--
अनेक सरल बहु कोशिक जीवो में भी विशिष्ट जनन संरचनाएं पाई जाती  हैं ,जैसे राइजोपस में सूक्ष्म गुच्छ संरचनाएं  जनन में भाग लेती हैं ये गुच्छ बीजाणु धानी है जिनमें विशेष कोशिकाएं अथवा बीजाणु पाए जाते हैं यह बीजाणु वृद्धि करके राइजोपस के नए जीव उत्पन्न करते हैं





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