लाइसोसोम

 लाइसोसोम -
लाइसोसोम को कोशिका की आत्मघाती थैली भी कहा जाता है Iइसकी खोज सीडी डूवे ने 1964 में की ।लाइसोसोम अधिकतर जंतुओं में पाया जाता है , पादपों में इसकी उपस्थिति कम पाई जाती है ।यह 0.4-0.8u व्यास की गोल या अंडाकार  संरचनाएं होती है ,इनके भीतर तरल भरा होता है ,इस तरल में वसा शर्करा प्रोटीन एवं न्यूक्लिक अम्ल आदि के पाचन व अपघटन गठन हेतु 40 प्रकार के एंजाइम ( हाइड्रोलेज लाइपेज प्रोटीऐज कार्बोहाइड्रेज फास्फेटेज कैथपसीन आदि) ,इन सभी एंजाइम को क्रिया करने के लिए अम्लीय माध्यम की आवश्यकता होती है ।लाइसोसोम कोशिका में उपस्थित समस्त पदार्थों का पाचन करने में सक्षम होता है ।लाइसोसोम में उपस्थित एंजाइम झिल्ली के फटने पर ही कार्य करते हैं झिल्ली के फटने पर कोशिका की विभिन्न संरचनाओं का पाचन या अपघटन कर देते हैं , इसी कारण इसे कोशिका की आत्मघाती थैलीया कहते हैं।



लाइसोसोम के प्रकार -
यह बहुरूपी कोशिकांग है ,यह एक ही प्रकार की कोशिकाओं में अलग-अलग समय पर अलग अलग प्रकार का पाया जाता है।
प्राथमिक लाइसोसोम- नवनिर्मित लाइसोसोम को प्राथमिक लाइसोसोम कहते हैं। इसका निर्माण गॉल्जीकाय या अंतः प्रद्व्यी जालिका से होता है।
द्वितीयक लाइसोसोम-
इनका निर्माण कोशिका झिल्ली के द्वारा बाहरी पदार्थो के  अन्तर्गहण के समय होता है ।अन्तर्गहण में पिनेकोसाइटोसिस व फगोसाइटोसिस कि क्रियाएं होती हैं ,इन क्रियाओं को एण्डोसाइटोसिस कहते हैं ।पिनेकोसाइटोसिस के समय बनने वाली रचना को पिनोसोम्स, वे फेगोसाइटोसिस के समय बनने वाली रचना को फेगोसोम्स कहते हैं I यह दोनों संरचनाएं मिलकर के द्वितीयक लाइसोसोम बनाते हैं।
अवशिष्ट काय -
द्वितीयक लाइसोसोम में शेष बचे हुए अपचित पदार्थ युक्त संरचना को अवशिष्ट काय कहते हैं।
स्वभक्षी रसधानियां-
ऐसे लाइसोसोम जो स्वयं की कोशिका के कोशिकागों जैसे माइट्रोकांड्रिया राइबोसोम आदि का पाचन कर दे इन्हें स्वभक्षी रसधानियां कहते हैं।
इस प्रकार के लाइसोसोम का निर्माण विशेष परिस्थितियों या रोगजनक अवस्था में होता है।
लाइसोसोम के कार्य-
-बाह्य कोशिकीय पदार्थों का पाचन करना ,अंतःकोशिकीय पदार्थों का पाचन करना
-स्वयलयन कोशिका जिसमें लाइसोसोम होते हैं ,उसी कोशिका की कोशिका अंगों का पाचन कर जाना 'इसी कारण इन्हें आत्महत्या करने वाली थैलियां कहते हैं '
-सूत्री विभाजन का समारंमभन
-निषेचन में सहायक अंड कोशिका मे नर युग्मक के प्रवेश हेतु झिल्ली का पाचन कर मार्ग बनाते हैं॥
-गुणसूत्रों को पृथक करना।
-अंकुरित बीजों में संचित भोजन का पाचन कर अंकुरण हेतु उपलब्ध कराना।

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