हृदय

हृदय

क्या आपने कभी सोचा है कि हमारा हृदय कैसे कार्य करता है???
तो आइए इसके बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं-----
हृदय एक पेशीय अंग है जो हमारी मुट्ठी के आकार का होता है| क्योंकि रुधिर को ऑक्सीजन वह कार्बन डाइऑक्साइड दोनों का ही वहन करना होता है अतःऑक्सीजन प्रचुर रुधिर को कार्बन डाइऑक्साइड युक्त रुधिर से मिलने को रोकने के लिए हृदय के कोष्ठो में बंटा होता है |कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ने के लिए फुफ्फुस मैं जाना होता है तथा फुफ्फुस से वापस ऑक्सीजनित रुधिर को हृदय में लाना होता है |यह ऑक्सीजन प्रचूर रुधिर तब शरीर के शेष हिस्सों में पंप किया जाता है| -

हृदय
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हम इस प्रक्रम को विभिन्न चरणों में समझ सकते हैं-|-
ऑक्सीजन प्रचुर फुफ्फुस से हृदय में बाई ओर स्थित कॉष्ठ- बाँया अलिंद मैं आता है |इस रुधिर को एकत्रित करते समय बाया अलिंद शिथिल रहता है| जब अगला कॉष्ठ -बाँया निलय, फैलता है तब यह संकुचित होता है जिससे रुधिर इसमें स्थानांतरित होता है| अपनी बारी पर जब पेशीय बाँया निलय संकुचित होता है ,तब रुधिर शरीर में पंपित हो जाता है| ऊपर वाला दाँया कॉष्ठ, दाँया अलिंद जब फैलता है तो शरीर से विऑक्सीजनित रुधिर इसमें आ जाता है| जैसे ही दाँया अलिंद संकुचित होता है, नीचे वाला संगत कॉष्ठ, दाँया निलय फैल जाता है | यह रुधिर को दाएँ निलय में स्थानांतरित कर देता है जो रुधिर को ऑक्सीजनीकरण हेतु अपनी बारी पर फुफ्फुस में पंप कर देता है |अलिंद की अपेक्षा निलय की पेशीय भित्ति मोटी होती है क्योंकि निलय को पूरे शरीर में रुधिर भेजना होता है |जब अलिंद या निलय संकुचित होते हैं तो वॉल्व उलटी दिशा में रुधिर प्रभाव को रोकना सुनिश्चित करते हैं|
तथा फुफ्फुसीय धमनी व फुफ्फुसीय शिरा फेफड़ों की कूपिकाओ से जुड़ी होती हैं जो ऑक्सीजन लेती है और कार्बन डाइऑक्साइड को फेफड़ों में छोड़ देती हैं
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