उत्सर्जन - सामान्य परिचय
उत्सर्जन क्या है या किसे कहते हैं???
अनेक उपापचयी क्रियाओं में जनित नाइट्रोजन युक्त पदार्थों का शरीर से बाहर निकालना या वह जैव प्रक्रम जिसमें इन हानिकारक उपापचयी वर्ज्य पदार्थों का निष्कासन उत्सर्जन कहलाता है|--
मानव में उत्सर्जन--
मानव के उत्सर्जन तंत्र में एक जोड़ी वृक्क, एक मूत्र वाहिनी, एक मुत्राशय तथा एक मूत्र मार्ग होता है,| वृक्क मैं मूत्र बनने के बाद मूत्र वाहिनी मैं होता हुआ मुत्राशय मैं आ जाता है तथा यहां तब तक एकत्रित रहता है. जब तक मूत्र मार्ग से यह निकल नहीं जाता
मूत्र किस प्रकार तैयार होता है???
मूत्र बनने का उद्देश्य रुधिर में से वर्ज्य पदार्थों को छानकर बाहर करना है | फुफ्फुस मे कार्बन डाइऑक्साइड रुधिर से अलग हो जाती हैं ।जबकि नाइट्रोजनी वर्ज्य पदार्थ जैसे यूरिया या यूरिक अम्ल, वृक्क मेें अलग कर लिए जाते हैं, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं की वृक्क की आधारी एकक, फुफ्फुस की तरह ही बहुत पतली भिति वाली रुधिर केशिकाओ का गुच्छ होता है. वृक्क मे प्रत्येक केशिका गुच्छ एक नलिकाा के कप के आकार के सिरे के अंदर होताा है यह नलिका छने हुए मुुत्र को एकत्रित करती है ,प्रत्येक वृक्क मैं ऐसे कई निस्यंदन एकक होते हैं जिन्हें नेफ्रॉन या वृक्काणु कहते हैं। जो आपस में निकटता से पैक रहतेे हैं ,प्रारंभिक निस्यंद मैं कुछ पदार्थ जैसे ग्लूकोज अमीनो अम्ल लवण और प्रचुर मात्रा मैं जल रहते, जैसे-जैसे मूत्र इस नलिका में प्रवाहित होता है इन पदार्थोंं का चयनित पुनअवशोषण हो जाता है ।जल की मात्रा पुनअवशोषण शरीर में उपलब्ध अतिरिक्त जल की मात्रा पर , तथा कितना विलेय वर्ज्य उत्सर्जित करना है पर निर्भर करता है। प्रत्येक वृक्क में बननेे वाला मूत्र, एक लंबी नलिका मूत्र वाहिनी मैं प्रवेश करता हैै जो वृक्क को मूत्राशय से जोड़ती है। मूत्राशय मूत्र भंडारित करता है, जब तक की फैले हुए मूत्राशय का दाब मूत्र मार्ग द्वारा उसे बाहर न कर दे मूत्राशय पेशीय होता है अतः यह तंत्रिका नियंत्रण में परिणाम स्वरूप हम प्राय मित्र निकासीी को नियत्रिित कर लेतेे हैं|
वृक्काणु की रचना----
तो दोस्तों आपको यह जानकारी कैसी लगी मुझे ईमेल जरूर कीजिएगा
Email id-- vasudevkhemada8899@gmail.com
Facebook id--- vasudev meghwal
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मानव में उत्सर्जन--
मानव के उत्सर्जन तंत्र में एक जोड़ी वृक्क, एक मूत्र वाहिनी, एक मुत्राशय तथा एक मूत्र मार्ग होता है,| वृक्क मैं मूत्र बनने के बाद मूत्र वाहिनी मैं होता हुआ मुत्राशय मैं आ जाता है तथा यहां तब तक एकत्रित रहता है. जब तक मूत्र मार्ग से यह निकल नहीं जाता
मूत्र किस प्रकार तैयार होता है???
मूत्र बनने का उद्देश्य रुधिर में से वर्ज्य पदार्थों को छानकर बाहर करना है | फुफ्फुस मे कार्बन डाइऑक्साइड रुधिर से अलग हो जाती हैं ।जबकि नाइट्रोजनी वर्ज्य पदार्थ जैसे यूरिया या यूरिक अम्ल, वृक्क मेें अलग कर लिए जाते हैं, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं की वृक्क की आधारी एकक, फुफ्फुस की तरह ही बहुत पतली भिति वाली रुधिर केशिकाओ का गुच्छ होता है. वृक्क मे प्रत्येक केशिका गुच्छ एक नलिकाा के कप के आकार के सिरे के अंदर होताा है यह नलिका छने हुए मुुत्र को एकत्रित करती है ,प्रत्येक वृक्क मैं ऐसे कई निस्यंदन एकक होते हैं जिन्हें नेफ्रॉन या वृक्काणु कहते हैं। जो आपस में निकटता से पैक रहतेे हैं ,प्रारंभिक निस्यंद मैं कुछ पदार्थ जैसे ग्लूकोज अमीनो अम्ल लवण और प्रचुर मात्रा मैं जल रहते, जैसे-जैसे मूत्र इस नलिका में प्रवाहित होता है इन पदार्थोंं का चयनित पुनअवशोषण हो जाता है ।जल की मात्रा पुनअवशोषण शरीर में उपलब्ध अतिरिक्त जल की मात्रा पर , तथा कितना विलेय वर्ज्य उत्सर्जित करना है पर निर्भर करता है। प्रत्येक वृक्क में बननेे वाला मूत्र, एक लंबी नलिका मूत्र वाहिनी मैं प्रवेश करता हैै जो वृक्क को मूत्राशय से जोड़ती है। मूत्राशय मूत्र भंडारित करता है, जब तक की फैले हुए मूत्राशय का दाब मूत्र मार्ग द्वारा उसे बाहर न कर दे मूत्राशय पेशीय होता है अतः यह तंत्रिका नियंत्रण में परिणाम स्वरूप हम प्राय मित्र निकासीी को नियत्रिित कर लेतेे हैं|
वृक्काणु की रचना----
तो दोस्तों आपको यह जानकारी कैसी लगी मुझे ईमेल जरूर कीजिएगा
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