लाख कीट पालन। लाख कीट का जीवन चक्र।

लाख कीट पालन क्या है? 

लाख एक प्राकृतिक लीसा या रेजिन हैं जो एक कीट द्वारा स्त्रावण से प्राप्त होता है। इसे लाख कीट कहते हैं। लाख की प्राप्ति हेतु इन कीटो के संवर्धन की तकनीक लाख कीट पालन कहलाती हैं। 

लाख कीट पालन मुख्यत किन राज्यों में होता है?

भारत में मुख्य लाख उत्पादक राज्य बिहार, मध्यप्रदेश, प. बंगाल, आसाम, गुजरात, पंजाब, राजस्थान, (इंद्रगढ, जयपुर, करौली, झालावाड़, कोटा) व महाराष्ट्र है। लाख कीटों की अनेक जातियों में लैसीफर लैक्का सबसे महत्वपूर्ण है इससे व्यापारिक रूप से लाख प्राप्त किया जाता है।

लाख कीट एक सूक्ष्म रेजिन सदृश्य रेंगने वाला, पतला कीट है जो अपनी चोंच को पादप उत्तक में डाल कर रस चूसता है व वृद्धि करता है। लाख इसके शरीर के पश्च भाग से स्त्रावित होती है। अंत में यह कीट स्वयं द्वारा बनाये कोष्ठिका में बंद हो जाता है। अधिक मात्रा में व्यापारिक लाख मादा कीट द्वारा स्त्रावित किया जाता है जो स्वयं के शरीर का रक्षा आवरण बनाता है, जो परपोषी पादप के लिये हानिकारक होता है।

लाख कीट का जीवन-चक्र

पूर्ण व्यस्क होने पर नर स्वयं के कक्ष को छोड़कर लाख की पपड़ी पर गतिमान होता है। नर मादा द्वारा बनाये गये रेजिन युक्त कक्ष में प्रवेश करता है व मादा को निषेचित करता है। 

निषेचन के तुरन्त बाद मादा में अत्यधिक परिवर्तन होता है वह अधिक पादप रस चूसती है व अधिक रेजिन व मोम स्त्रावित करती है। अण्डों का परिवर्धन अण्डाशय में ही शुरू हो जाता है। ये परिवर्तित अंडे उष्मायन कोशिका में निप कर दिए जाते हैं। छः सप्ताह बाद अण्डे से निम्फ स्फुटित होते हैं इन की संख्या बहुत अधिक होती है। अधिक संख्या में निम्फ के निकलने को वृंदन कहते हैं। निम्फ सूक्ष्म नौकाकार, लाल रंग के व 0.5m.m. लंबे होते हैं।  

स्फुटन के शीघ्र बाद निम्फ सक्रिय रूप से नई मांसलोदद्भिद शाखा को "भोजन के लिये रेंग कर ढूंढता है और सभी निम्फ टहनी के चारों ओर एक क्रमिक आवरण का निर्माण करते हैं अब ये दापद टहनी का रस चूसते हैं व सम्पूर्ण शरीर पर स्थित विशेष त्वचीय ग्रन्थियों द्वारा रेजिनयुक्त पदार्थ स्त्रावित करना शुरू करते हैं जिस के वायु के सम्पर्क में आते ही वह ठोस हो जाता है व निम्फ के चारों ओर विलोपन बन जाता हैं यह कोण्ठिका कहलाती हैं, इस कक्ष में ही अनेक जीवन क्रियाएं निर्मोचन, आकारीकीय परिवर्तन, भक्षण, लाख स्त्रवण आदि सम्पन्न होती है। निम्फ स्वयं की कोण्ठिका में ही निर्मोचन करता है। द्वितीय निर्मोचन निम्फ ही कुछ समय के लिये कूट प्यूपा अवस्था में रहता है। 6-8 सप्ताह बाद निम्फ वयस्क में कायान्तरित हो जाते हैं। इन कायान्तरित वयस्कों में नर 30% व मादा 70% होती है। इस प्रकार सम्पूर्ण जीवन चक्र सम्पन्न होता है।

लाख कीट पालन। लाख कीट का जीवन चक्र।

लाख कृषि एक जटिल प्रक्रिया है इसमें निम्न क्रियाएं सम्मिलित होती हैं -

(1) परपोषी पादप की देखभाल : परपोषी पादप पर ही लाख कीट भोजन, आश्रय व जीवन-चक्र की पूर्णता हेतु निर्भर रहता है। 

इसकी खेती दो प्रकार से होती हैं- 

  • पादप को प्राकृतिक रूप से वृद्धि करने दी जाती है केवल कृषक को पादप की रक्षा व देखरेख करनी होती है। 
  • इसमें उपयुक्त कृषि योग्य भूमि में परपोषी पादप की बागवानी की जाती हैं। कृत्रिम खाद, सिंचाई, जुताई व बाड लगाकर रक्षा की जाती है। पादप की एक निश्चित ऊंचाई तक वृद्धि के पश्चात् उस पर 'लाख कीट' का निवेशन किया जाता है। 

(2) परपोषी पादप की कांट-छांट: लाख कीट निम्फ परपोषी पादप की नई शाखाओं से शुंडिका द्वारा कोशिका का रस चूसता हैं अतः ½ इंच वाली शाखाओं को उद्गम आधार से व 0.5 इंच से अधिक व्यास वाली टहनियों को आधार से लगभग 1.5 इंच से काटते हैं। 

(3) निवेशन: इसके द्वारा लाख कीट को नये परपोषी पादप पर प्रवेश कराया जाता है यह निवेशन दो प्रकार से होता हैं जैसे एक ही लाख कीट स्वयं अन्य परपोषी पादप की ओर गमन करता है प्राकृतिक निवेशन कहलाता है। दूसरा कृत्रिम निवेशन द्वारा होता है जिसमें दो सप्ताह के स्फुटन के पहले लाख लगी टहनियां 6 इंच के आकार में काट ली जाती हैं जो जनन लाक्षा कहलाती हैं। 

इन्हें दो सप्ताह तक 'ठंडे स्थान में रखा जाता है। जब इन जनन लाक्षा से निम्फ निकलते हैं तो यह नई परपोषी पादप की शाखाओं पर जनन लाक्षा को बांधा जाता है लाख कीट अपना जीवन चक्र का एक वर्ष में दो बार पुनरावर्तन करता है।

(4) वृंदन: वृंदन के समय कीट के गुदाक्षेत्र की ऊपरी सतह पर एक पीला धब्बा बन जाता है। इसमें मांस-पेशी संकुचित होती है व कीट संलगनी स्थान से अलग हो जाता है। अब बची खोखली गुहा को 'मोम से आवृत कर दिया जाता है। जब अण्डे स्फुटन के निकट होते हैं तो ये नारंगी रंग में परिवर्तित हो जाते हैं जो वृंदन का सूचक होते हैं। 

(5) लाख संग्रह व संसाधन : जो लाख परपोषी पादप से काटी जाती है शाख लाक्षा कहलाती है। लाक्ष निम्फ के निकलने से पहले या बाद में खुरची जाती है अगर यह निम्फ निकलने से पहले की होती है तो आरी लाख तथा अगर बाद की होती है तो फूंकी लाक्षा कहलाती है। खुरची लाख को छाया में सुखाकर बीन कर पीसा जाता है।

महीन गंदगी को हटाने व रंग के लिये इसे बार-बार जल से धोया जाता है। जिसे कण लाक्षा कहते हैं अब इसे धूप में सुखाकर, गलाकर, छानकर अंतिम आकार दिया जाता है अब इसे शल्क लाख कहते हैं।


लाख का रासायनिक संगठन

रेजिन - 68-90%

रंग - 2-10%

मोम - 6%

अल्बुमिन युक्त पदार्थ - 5-10%

खनिज पदार्थ - 3-7%

जल - 3%


लाख के उपयोग :

लाख खिलौने बनाने, हार, कंगन, मोहरी लाख, ग्रामोफोन रिकॉर्ड आदि बनाने के लिये काम में ली जाती है।

यह पिसाई के पत्थर, जैवरों में भरने हेतु, कृत्रिम चमड़ा, वार्निश व पेंट बनाने कांच के पीछे की ओर चांदी की पॉलिश करने, केबल तारों को बंद करने में प्रयुक्त होती है।

शाख लाक्षा बनाते समय बचे लाख अंश का उपयोग रंगने के कार्य में किया जाता है।

नाखून की पॉलिश, गूढ लेखन स्याही बनाने, फोटोग्राफीय उत्पाद निर्माण में भी लाख उपोत्पाद कार्य में लिये जाते हैं।


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