पारिस्थितिकी किसे कहते है | भारतीय पारिस्थितिकी का जनक कौन हैं?
पारिस्थितिकी किसे कहते है?
पारिस्थितिकी विज्ञान की वह शाखा है जिसमें समस्त जीवों एवं वनस्पतियों तथा भौतिक पर्यावरण के मध्य अंतसंबंधों एवं विभिन्न जीवों के मध्य पारस्परिक अन्तसंबंधों का अध्ययन किया जाता है।
पारिस्थितिकी शब्द का उद्गम दो ग्रीक शब्दों Oikos जिसका अर्थ house (आवास) है एवं Logos= Study(अध्ययन) है से हुआ है।
यहाँ आवास से तात्पर्य जीव-जंतुओं एवं पौधों के प्राकृतिक आवास या पर्यावरण से है। सर्वप्रथम जर्मन वैज्ञानिक रीटर ने 1868 ई. में यह शब्द का प्रयोग किया था।
भारतीय पारिस्थितिकी का जनक कौन हैं?
प्रो. रामदेव मिश्रा को भारतीय पारिस्थितिकी का जनक कहते हैं।
पारिस्थितिकी तंत्र : वातावरण के जैविक व अजैविक कारकों के समन्वय से निर्मित्त तंत्र पारिस्थितिकी तंत्र कहलाता है।
पारिस्थितिकी तंत्र की कोई निश्चित सीमा नहीं होती है। पौधों और पशुओं के प्राकृतिक पारिस्थितिक समूह अपने क्षेत्र में एक बायोम के रूप में कार्य करते हैं। एक वायोम सबसे बड़ा स्थलीय समुदाय है। वर्षा, तापक्रम, मृदा की प्रकृति, अवरोध, अक्षांश एवं ऊँचाई आदि बायोम की प्रकृति तथा सीमा निर्धारित करते है।
पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना या घटक :पारिस्थितिकी तंत्र के संरचनात्मक घटकों को दो मुख्य वर्गों में विभक्त किया गया है
(1) जैविक घटक :
इसमें जीवित जीवों (समस्त जन्तु एवं वनस्पति) के प्रकार संख्या एवं वितरण को शामिल किया जाता है। ये निम्न हैं
उत्पादक : हरे-भरे पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा कार्बोहाइड्रेट पैदा करते है तथा प्रोटीन और वसा का संश्लेषण करते है अत: हरे पौधे उत्पादक कहलाते हैं। स्वयं भोजन बनाने के कारण ये स्वपोषी कहलाते हैं। ई.जे. कोरोमेण्डी ने इन्हें परिवर्तक की संज्ञा दी है।
अपघटक : अहरित जीव जैसे फँफूदी तथा कुछ बैक्टीरिया अपना भोजन खुद नहीं बनाते तथा मृत और क्षयमान पौधों या पशुओं पर जीवित रहते है। वे एक विशिष्ट प्रकार के उपभोक्ता हैं जिन्हें 'अपघटक' कहते है। उपभोक्ता या परपोषी: इस श्रेणी में वे सभी जीव-जंतु आते हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भोजन के लिए स्वपोषी पर निर्भर करते है तथा स्वयं भोजन बना पाने में असमर्थ होते है।
प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता : शाकाहारी जीव जैसे गाय, बैल, हिरण, भेड़-बकरी व अन्य जो प्रत्यक्ष रूप से हरे पौधों से भोजन प्राप्त करते है प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता कहलाते हैं।
द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता : मांसाहारी जीव जो शाकाहारी जीवों को खाते हैं। जैसे साँप, मेंढक, लोमड़ी, छिपकली, भेड़िया आदि द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता है।
तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता : ये द्वितीय श्रेणी/प्रथम श्रेणी के उपभोक्ताओं को अपना भोजन बनाते हैं। इसमें शेर, चीता, बाघ, बाज इत्यादि तृतीयक उपभोक्ता हैं। इन्हें द्वितीयक मांसाहारी भी कहते हैं। पौधों को मूल उत्पादक एवं जन्तुओं को गौण उत्पादक भी कहा जाता है।
खाद्य श्रृंखला : सजीवों के मध्य भोजन के लिए श्रंखलाबद्ध संबंध खाद्य श्रृंखला कहलाती है। प्रत्येक खाद्य श्रृंखला के एक सिरे पर उत्पादक और अंतिम सिरे पर अपघटक होते है। खाद्य श्रृंखला का प्रत्येक स्तर खाद्य स्तर कहलाता है। प्रकृति में भोजन संबंधों को केवल एक खाद्य श्रृंखला द्वारा नहीं समझा जा सकता है। खाद्य श्रृंखला में उत्तरोत्तर ऊँचे स्तर तक पहुँचने पर सदस्यों की संख्या कम होती जाती है पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न जैविक
घटकों के खाद्य स्तरों के संबंध को त्रिभुजाकार स्तूप (पिरामिड) द्वारा प्रदर्शित करते हैं जिसे पारिस्थितिकी स्तूप कहते है। ये खाद्य स्तूप तीन प्रकार के होते हैं (1) जीव संरका का स्तूप (2) जीवभार का स्तूप (3) ऊर्जा का स्तूप |
(2) अजैविक घटक :
(i) वातावरणीय/भौतिक या जलवायु कारक : जलवायु कारकों में तापमान, आर्द्रता, वर्षा और हिमपात को शामिल किया जाता है।
(ii) अकार्बनिक पदार्थ : इसमें आवश्यक खनिज जैसे कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, सल्फर, फॉस्फोरस आदि। (iii) कार्बनिक पदार्थ : इसमें प्रोटीन्स, शर्करा, अमीनो अम्ल, वसा आदि शामिल है।
अजैविक कारक विभिन्न जीवों के वितरण आचरण तथा अन्य जीवों के साथ सहसंबंधों की सीमा निर्धारित करते हैं तथा पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करते हैं।
कुछ अत्यंत महत्त्वपूर्ण अजैविक कारक :
(i) तापमान (ii) पवन (iii) जल (vi) लवणता (vii) आर्द्रता (viii) स्थलाकृति (iv) खनिज तत्व (v) प्रकाश (ix) आवास की पृष्ठभूमि
पारिस्थितिकी किसे कहते है। भारतीय पारिस्थितिकी का जनक किसे कहते हैं। पारिस्थितिकी क्या है
भारत में पाई जाने वाली वनस्पति I भारत में पाए जाने वाले वन I