मधुमक्खी पालन क्या है। मधुमक्खी पालन पर निबंध

मधुमक्खी पालन क्या है। मधुमक्खी पालन पर निबंध

मधुमक्खियों के कृत्रिम - पालन को 'एपीकल्चर' (apiculture) कहा जाता है। मनुष्य एवं अन्य जन्तुओं के लिए मधुमक्खियों द्वारा तैयार किया गया मधु (Honey) एक प्रमुख स्वास्थ्यवर्धक भोजन है। 

मधुमक्खियों द्वारा तैयार किया गया मोम (wax) चिकित्सा एवं अन्य कार्यो के लिए प्रयोग किया जाता है। मधुक्खियों द्वारा पौधों में परपरागण (cross pollination) भी होता है। अतः ये कृषि के लिए भी महत्त्वपूर्ण है।

मधुमक्खी पालन क्या है। मधुमक्खी पालन पर निबंध


मधुमक्खी का वर्गीकरण (Classification):

  • संघ (Phylum) - आर्थ्रोपोडा (Arthropoda) 
  • उपसंघ (subphylum) - मैण्डीवुलेटा (Mandibulata)
  • वर्ग (class) - इन्सैक्टा (Insecta)
  • उपवर्ग (subclss) - टैरीगोटा (Pterygota)
  • गुण (Order) - हाइमिनॉप्टेरा (Hymenoptera)
  • श्रेणी (Genus) - एपिस (Apis)

स्वभाव एवं वासस्थान (Habits and Habitat):

मधुमक्खी एक सामाजिक कीट है इसके मुखांग चूषण और बेधन दोनों प्रकार के होते है। इसमें पूर्ण-कायान्तरण (Complete meta morphosis) पाया जाता है। ये मकरंद (necter) और फूलों के पराग (pollen) पर भरण-पोषण करती है। मधुमक्ख्यिाँ छत्ते (Beehives) बनाकर स्थायी निवाहों (colonies) में रहती है। जिनमें अनेक सदस्य (individuals) होते हैं। एक निवह में 50,000 से भी अधिक सदस्य होते हैं।

मधुमक्खियाँ की जातियाँ

  • एपिस डॉर्सेटा 
  • एपिस फ्लोरिया
  • एपिस इंडिका
  • एपिस मैलीफेरा

मधुमक्खी की प्रत्येक निवह एक रानी (queen) कुछ ड्रोन (drones) अर्थात् नर तथा हजारों श्रमिक (workers) अर्थात् बंध्य मादाएँ (sterile females ) द्वारा रचित होती है। 

इस सामाजिक व्यवस्था के अन्तर्गत मधुमम्खियाँ उच्च स्तर का सामाजिक जीवन व्यतीत करती है। सामान्यतः ये एक ही निलय (hive) अर्थात् छत्ते (Comb) में वर्षों तक रहती है। छत्ते मोम द्वारा रचित जटिल संरचनाएँ होती है। किसी औसत परिमाण के छत्ते में किसी एक समय 10,000 से 40,000 तक कीट वास वास करते है। 

प्रत्येक छत्ते में एक में एक रानी, 500 से 1000 नर अर्थात ड्रोन (males or drones) तथा शेष हजारों श्रमिक (workers) उपस्थित होते हैं जो कार्यानुसार स्वयं उपजातियों में बँटे होते हैं। विभिन्न प्रभेदों अर्थात् जातियों की सरंचना तथा कार्य भिन्न एवं विशिष्ट होते हैं। 

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प्रभेदों के कार्य -

(i) श्रमिक (Worker): श्रमिक मधुमक्खी परिमाण में सबसे छोटी होने के साथ संख्या में सबसे अधिक होती है। ये बाँझ-मादा अर्थात् बंध्य- मादाएँ (sterile females) होती हैं। इनके रोज के कार्य में बगीचों, खेतों एवं खुले मैदानों में जाना तथा वहाँ उपस्थित फूल आदि से मधु बनाने से के लिए पराग (Pollen), मकरन्द (nectar), रेजिन (resin) अथवा गोंद लाना एवं संग्रहण ये कार्य पुराने श्रमिक ही करते है। पुराने सक्रिय सदस्यों को क्षेत्र श्रमिक (field-workers) कहते हैं। 

नये श्रमिक जो युवा श्रमिक (young-workers) होते है। छत्ते में ही रहते है तथा गृह-श्रमिक (house workers) कहलाते है, बाहर से संग्रह किये हुए पदार्थों की देखभाल करने इन्हें छत्ते के कोष्ठों में जमा करने, मोम द्वारा छत्ते बनाने, मरम्मत एवं सफाई करने, छत्ते में वायु संचालन (ventilation) का नियमन करने, रक्षा करने तथा विभिन्न श्रेणी के प्रभेदों के पोषण एवं देखभाल करने का कार्य करते है। 

गृह-श्रमिक ही शिशु, रानी एवं नर सदस्यों की देखभाल करते हैं तथा उन्हें भोजन प्रदान करते है। ये रानी द्वारा दिये गये अण्डों की संख्या का भी नियन्त्रण करते हैं। संकटकाल में श्रमिक अनिषेचित-अण्डों को उत्पन्न कर नर को भी जन्म देते हैं। इस प्रकार कार्य की दृष्टि से मधुमक्खी समाज में सर्वाधिक महत्व श्रमिकों का होता है।

श्रमिक प्रातःकाल ही छत्ते से निकलकर फूलों से चूषक-नलिका द्वारा मकरन्द (nectar) एवं पराग (pollen) एकत्रित करना आरम्भ करते हैं। यह पदार्थ एक बड़े-थैले में जिसे क्रॉप (crop) या पराग-कोष अथवा मधुकोष (honey sac) कहते हैं, में जमा करते जाते हैं। 

इस थैले के पश्च भाग में एक कपाट (value) होता है जिसके द्वारा ये आवश्यकतानुसार इसी एकत्रित भोजन का कुछ अंश स्वयं भी ग्रहण करते हैं। शेष भोज्य पदार्थ पर लार में उपस्थित एन्जाइम क्रिया करते हैं। ओर सूक्रोज को ग्लूकोज, फ्रक्टोज या लेव्यूलोज में बदल देते है। 

छत्ते में लौटकर श्रमिक यह पदार्थ क्रॉप में से छतों कोष (cells) में डाल देते है। यह पदार्थ कोषों में उपस्थित युवा श्रमिकों द्वारा पुनः मुख में ग्रहण कर रसायनिक क्रिया हेतु लाया जाता है तथा फिर उगला जाता है। इसके बाद हवा उड़ाने वाले विशिष्ट श्रमिक (fanners) इस द्रव में से जल की अधिक मात्रा को उड़ा देते है। अन्तिम सांन्द्रित पदार्थ ही मीठा शहद होता है, 

ऐसी कोठरियाँ अर्थात् कोष जिनमें शहद भरा होता है मोम (wax) द्वारा बन्द (seal) कर दिया जाता है। इन कोठरियों को आवश्यकता के समय ही खोला जाता है।

(ii) नर (Drones): ये नर प्रभेद के कीट जिनका प्रमुख कार्य रानी को निषेचित करना होता है। अनेकों नर कीटों में से केवल एक ही यह कार्य करने का अधिकारी होता । इनमें गमन अर्थात् उड़ान वृन्दन-काल के दौरान होती है। ये अन्य कार्य नहीं करते है। इनका पोषण श्रमिकों द्वारा किया जाता है।,

(iii) रानी (Queen): यह जननक्षम मादा होती है। इसका एक मात्र कार्य अण्ड देना होता है। यह पूरे छते के सदस्यों की जननी होती है। यह छत्ता बनाने या शहद एकत्रित करने का कार्य करने में असमर्थ होती है। इसे रॉयल जैली (Royal-jelly) नामक विशेष भोजन दिया जाता है एवं इसके सभी कार्य श्रमिक करते हैं।

मधुमक्खी छत्ता (Beehive or Honey-comb):

छत्ता (comb) अर्थात् निलय (hive) किसी चट्टान, भवन के किसी भाग या पेड़ की शाखा से लटकता हुआ बनाया जाता है। एपिस फ्लोरिया में छत्ता 15 सेमी लम्बा एवं एपिस डॉर्सेटा में लगभग 180 सेमी लम्बा होता है। छत्तें की लम्बाई में ऊर्ध्व सतह पर षट्कोणीय कोष्ठकों (Hexagonal cells) की दो पंक्तियाँ पायी जाती है। कोष्ठक पाँच प्रकार के होते है।

मधुमक्खी पालन क्या है। मधुमक्खी पालन पर निबंध
मधुमक्खी पालन क्या है। मधुमक्खी पालन पर निबंध

(i) संग्रह-कोष्ठ (Storage Cells): ये लगभग 5 मिमी चौड़े होते हैं एवं छत्ते के ऊपरी भाग में स्थित रहते हैं। इसमें मधु एवं पराग संग्रह किया जाता है।

(ii) ब्रुड कोष्ठ या जनन कोष्ठ (Brood cells): ये कोष्ठ छत्तें के केन्द्रीय एवं निचले भाग में स्थित होते हैं। इनमें शिशुओं को रखा जाता है जहाँ इनका पालन-पोषण किया जाता है।

(iii) श्रमिक कोष्ठ (Worker cells): ये कोष्ठ भी संग्रह-कोष्ठ के आकार के होते है। इनमें श्रमिक रहते हैं। ये छत्तें में ऊर्ध्वतः स्थित होते है। छत्ते के भीतर केवल शिशु श्रमिक ही रहते है।

(iv) नर कोष्ठ (Drones cells): ये 6 मिमी चौड़े होते हैं जो छत्ते में ऊर्ध्वत स्थित होते है। इनमें नर रहते हैं एवं इनका पालन-पोषण भी यहीं होता हैं।

(v) रानी कोष्ठ (Queen cells): ये उपरोक्त सभी बड़े होत ये फूलदान की या अण्डाकार आकृति के होते है। ये सभी छत्ते में ऊर्ध्वतः पाये जाते हैं।


मधुमक्खी पालन की विधियाँ (Method of Bee-keeping): 

प्राचीन विधि (Indigenous method): प्राचीन विधि के अनुसार मधुक्खियाँ के प्राकृतिक छत्तों में मधु प्राप्त करने के लिए धुआँ करके मक्खियों को उड़ा दिया जाता है और शेष को मार कर छत्ते को निचोड़ कर मधु इकट्ठा किया जाता है। धीरे-धीरे इस विधि को एक वैज्ञानिक विधि द्वारा बदल दिया गया है।

आधुनिक विधि (Modern method): इस विधि के अन्तर्गत मधुमक्खी को कृत्रिम तरीके से पाला जाता है तथा फिर मधु इकट्ठा किया जाता है। इसे मधुमक्खी पालन (apiculture) कहा जाता है तथा वर्तमान में इसने एक बड़े उद्योग का रूप ले लिया है।


मधुमक्खी का कृत्रिम छता (Artificial beehive)

इसमें एक छिद्र मधुमक्खियों के अन्दर आने के लिए और एक छिद्र बाहर निकलने के लिए होता है। कक्ष में बड़ी संख्या में साँचे (frames) होते हैं

प्रत्येक साँचे में खड़ी दिशा में बहुत सी तारों द्वारा सधी मोम की पट्टलिकाएँ अर्थात् शीट (sheet) व्यवस्थित रहती हैं। इस ढाँचे को कॉम्ब फाउण्डेशन (Comb foundation) कहते है। इन तारों के साँचों के किनारों पर मधुमक्खियाँ, भित्तियाँ और कोष बनाना प्रारम्भ कर देती है। 

जनन-कोष्ठ के ऊपर एक अन्य कोष्ठ उपस्थित होता है, जिसे सुपर चैम्बर (Super-chamber) कहते हैं। इसमें भी कॉम्ब फाउण्डेशन (Comb foundation) के साथ उसी प्रकार के साँचे (frames) होते हैं। इस प्रकार के कृत्रिम छत्ते फलोद्यानों में रख दिये जाते है।

 इनमें रानी (queen) मक्खी कृत्रिम रूप से पहुचाँ दी जाती है और वह अण्डे (eggs) देती है, जिनमें श्रमिक (workers) विकसित होते हैं और निवह (colony) बननी प्रारम्भ हो जाती है। तथा फिर उसमें शहद इकट्ठा होने लगता है। 

कुछ दिनों के बाद फ्रेम से कोम्बस अलग कर दिये जाते है। और उनको अपेकेन्द्रित (centrifuge) किया जाता है। इस प्रकार शहद बिना छत्ते (comb) का फिर प्रयोग किया जाता हैं शहद के निष्कर्षण (extraction) के समय मधुक्खियों को ब्रश से एक और हटा दिया जाता है।

मधुमक्खी - पालन में दुसरी वस्तुओं का भी प्रयोग किया जात है- जैसे मधुमक्खी जाल (bee-net), नैट-वेल (net veil) एक जोड़ी दस्ताने (glove) एक ब्रश (brush) और शहद निचोड़ने के लिए एक सैन्ट्रीफ्यूज (centrifuge) आदि।

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