विषाणु(virus)

 वायरस-

Martinus Beijerinck ने सर्वप्रथम वायरस शब्द दिया था
वायरस शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ होता है सरल विष I
यह सजीवों व निर्जीव के मध्य की संयोजक कड़ी है, क्योंकि यह सजीव के संपर्क में आने पर सजीव की भांति व्यवहार करता है तथा निर्जीव के संपर्क में रहने पर यह निर्जीव की भांति व्यवहार करता है ।इसमें केंद्रक कोशिका द्रव्य प्लाज्मा झिल्ली नहीं पाई जाती। यह श्वसन करने में भी असमर्थ होते है। यह सजीव की कोशिका में परजीवी के रूप में रहकर वृद्धि व जनन क्रिया कर सकते हैं ।जब यह किसी पोषक कोशिका को संक्रमित कर लेते हैं , तो उसके कच्चे माल व उपापचयी तत्वों को अपने लिए उपयोग में लाते हैं , यह अपना स्वतंत्र स्थायित्व बनाए रखने में सक्षम होता है।
••••विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत विचारों का अध्ययन किया जाता है विषाणु विज्ञान( वायरोलॉजी) कहते हैं।



कुछ वायरस के चित्र


स्टेन्ले ने विषाणु को शुद्ध क्रिस्टलाइन अवस्था में प्राप्त किया इस कार्य हेतु उन्हें नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
विषाणु का आमाप 100 A° से 3000 A° होता है अर्थात यह जीवाणुओं से छोटे होते हैं ।
ल्यूरिया व डारनेल- के अनुसार विषाणु अति सूक्ष्म काय है , जो कोशिकाओं के भीतर रहकर जनन क्रिया करते हैं।
विषाणु के सामान्य लक्षण ।
••••विषाणु में DNA या RNA केवल एक ही प्रकार का केंद्रक अम्ल उपस्थित होता है ,इस आधार पर यह DNA या RNA विषाणु कहलाते हैं।
कैंसर उत्पन्न करने वाले ' रॉस सार्कोमा' विषाणु DNA व RNA दोनों रखते हैं, ••••इन्हें RNA-DNA विषाणु कहा जाता है।
••••इन पर प्रतिजैविक औषधिओं का हानिकारक प्रभाव नहीं होता है।
••••यह इतने प्रभावी होते हैं कि इनकी कम या अति सुक्ष्म मात्रा ही पोषण को संक्रमित कर प्रभाव दर्शाने में सक्षम में होती है।
••••ये क्रिस्टल अवस्था में प्राप्त किए जा सकते हैं।
••••अधिकतर विषाणु दण्डाकार या कfणय स्वरूप में होते हैं।
••••इनमें अत्यधिक ताप सहन करने की क्षमता पर होती है, इन पर सूर्य की किरणों का भी कोई प्रभाव नहीं होता।
••••विषाणु को आकृति के आधार पर दो समूहों में विभक्त कर दिया गया है।

-----समव्यासीय विषाणु- यह 17-60 mu व्यास वाले गोलाकार आकृति के बहुतलीय विषाणु होते हैं।

उदा.- तंबाकू मोजेक विषाणु

-----असमव्यासीय विषाणु- इन्हें संरचना के आधार पर पुनः तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है।

छड़ या दण्डाडाकार
दृढ़ शलाखा रूपी विषाणु
प्रत्यास्थ तंतुकी विषाणु





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