भारत में पाई जाने वाली वनस्पति I भारत में पाए जाने वाले वन I

हमारे देश में निम्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पतियां पाई जाती है।

भारत में पाई जाने वाली वनस्पति

(1) -उष्णकटिबंधीय वर्षा वन -

 ये वन पश्चिमी घाटों के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों लक्ष्यदीप अंडमान और निकोबार दीप समूह, असम के ऊपरी भागों तथा तमिलनाडु के तट तक सीमित है। ये उन क्षेत्रों में भली-भांति विकसित है जहां 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा के साथ एक थोड़े समय के लिए शुष्क ऋतु पाए जाते हैं । इन वनों में वृक्ष 60 मीटर या इससे अधिक ऊंचाई तक पहुंचते हैं क्योंकि ये क्षेत्र वर्ष भर गर्म तथा आर्द्र रहते हैं ,अतः यहां हर प्रकार की वनस्पति वृक्ष झाड़ियां वे लताएं उठती हैं और वनों में इनकी विभिन्न ऊंचाइयों से कई स्तर देखने को मिलते हैं ।



वृक्षों में पतझड़ होने का कोई निश्चित समय नहीं होता अतः यह साल भर हरे-भरे लगते हैं।

इन वनों में सामान्य रूप से पाए जाने वाले जानवर -हाथी ,बंदर ,लैमूर और हिरण है। एक सींग वाले गैंडे असम और पश्चिम बंगाल के दलदली क्षेत्र में मिलते हैं। इसके अतिरिक्त इन जंगलों में कई प्रकार के पक्षी, चमगादड़ तथा कई रेंगने वाले जीव भी पाए जाते हैं।

इन वनों के व्यापारिक महत्व के कुछ वृक्ष - आबनूस, रोजवुड ,रबड़ और सिंकोना है।

(2)उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन-

ये भारत में सबसे बड़े क्षेत्र में फैले हुए वन है। इन्हें मानसूनी वन भी कहते हैं ।और ये उन क्षेत्रों में विस्तृत है जहां 70 सेंटीमीटर से 200 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है । इस प्रकार के वनों में वृक्ष शुष्क ग्रीष्म ऋतु में छह से आठ सप्ताह के लिए अपनी पत्तियां गिरा देते हैं । जल की उपलब्धि के आधार पर इन वनों को आर्द्र तथा शुष्क पर्णपाती वनों में विभाजित किया जाता है। इनमें से आर्द्र या नम पर्णपाती वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन
उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन


(।)आर्द्र वन

जहां 100 सेंटीमीटर से 200 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है ,अतः ऐसे वन देश के पूर्वी भागों उत्तरी पूर्वी राज्य, हिमालय के गिरीपद प्रदेशों ,झारखंड, पश्चिमी उड़ीसा, छत्तीसगढ़ तथा पश्चिमी घाटों के पूर्वी ढालों में पाए जाते हैं। सागोन इन वनों की सबसे प्रमुख प्रजाति है ।बांस, साल, शीशम, चंदन ,रवैर, कुसुम ,अर्जुन तथा शहतूत के वृक्ष व्यापारिक महत्व वाली प्रजातियां हैं।

(॥)शुष्क पर्णपाती -

वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां वर्षा  70 सेंटीमीटर से 100 सेंटीमीटर के बीच होती है ।ये वन प्रायद्वीपीय पठार के ऐसे वर्षा  वाले क्षेत्रों उत्तर प्रदेश तथा बिहार के मैदानों में पाए जाते हैं ।विस्तृत क्षेत्रों में प्राय सागोन ,साल ,पीपल तथा नीम के वृक्ष उठते हैं। इन क्षेत्रों के बहुत बड़े भाग कृषि कार्य में प्रयोग हेतु साफ कर लिए गए हैं और कुछ भागों में पशु चारण भी होता है ।
इन जंगलों में पाए जाने वाले जानवर प्राय सिंह, शेर ,सुअर ,हिरण और हाथी हैं। विविध प्रकार के पक्षी, छिपकली, सांप और कछुए भी यहां पाए जाते हैं।

(3)कंटीलें वन तथा झाड़ियां -

जिन क्षेत्रों में 70 सेंटीमीटर से कम वर्षा होती है वहां प्राकृतिक वनस्पति में कंटीले वन तथा झाड़ियां पाई जाती है । इस प्रकार की वनस्पति देश की उत्तरी पश्चिमी भागों में पाई जाती है। जिसमें गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़ ,मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा के अर्ध शुष्क क्षेत्र सम्मिलित हैं।
कंटीलें वन तथा झाड़ियां
कटीले वन तथा झाड़ियां

अकासिया, खजूर ,यूफोरबिया तथा नागफनी यहां की मुख्य पादप प्रजातियां हैं ।इन वनों के वृक्ष बिखरे हुए होते हैं ,इनकी जड़ें लंबी तथा जल की तलाश में चारों ओर फैली होती है, पत्तियां प्राय छोटी होती हैं जिनसे वाष्पीकरण कम से कम हो सके। शुष्क भागों में झाड़ियां और कटीले पादप पाए जाते हैं।
इन जंगलों में प्राय चूहे ,खरगोश, लोमड़ी, भेड़िए ,शेर ,सिंह ,जंगली गधा ,घोड़े तथा ऊंट पाए जाते हैं।

(4)पर्वतीय वन-

पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान की कमी तथा ऊंचाई के साथ साथ प्राकृतिक वनस्पति में भी अंतर दिखाई देता है । वनस्पति में जिस प्रकार का अंतर हम उष्णकटिबंधीय प्रदेशों से टुंड्रा की ओर देखते हैं उसी प्रकार का अंतर पर्वतीय भागों में ऊंचाई के साथ साथ देखने को मिलता है ।1000 मीटर से 2000 मीटर तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में आर्द्र शीतोष्ण कटिबंधीय वर्षावन पाए जाते हैं। इनमें चौड़ी पत्ती वाले ओक तथा चेस्टनट जैसे वृक्षों की प्रधानता होती हैं ।1500 से 3000 मीटर की ऊंचाई कैसे बीच शंकुधारी वृक्ष जैसे चीड़ देवदार ,सिल्वर फर ,स्प्रूस ,सीडर आदि पाए जाते हैं ।
ये वन प्रायः । हिमालय की दक्षिणी ढलानों, दक्षिण और उत्तर पूर्व भारत के अधिक ऊंचाई वाले भागों में पाए जाते हैं ।अधिक ऊंचाई पर प्राय शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदान पाए जाते हैं।

पर्वतीय वन
पर्वतीय वन

प्राय 3600 मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित शीतोष्ण कटिबंधीय वनों तथा घास के मैदानों का स्थान अल्पाइन वनस्पति ले लेती है ।सिल्वर फर ,जूनिफर ,पाइन ,बर्च इन वनो के मुख्य वृक्ष है। जैसे-जैसे हिम रेखा के निकट पहुंचते हैं इन वृक्षों के आकार छोटे होते जाते हैं ,अंततः झाड़ियों के रूप के बाद अल्पाइन वन घास के मैदानों में विलीन होते जाते हैं, इनका उपयोग गुर्जर तथा बक्करवाल जेसी घुमक्कड़ जातियां द्वारा पशु चारण के लिए किया जाता है ।अधिक ऊंचाई वाले भागों में मॉस, लिचन घास ,टुंड्रा वनस्पति का एक भाग है।
इन वनों में प्राय कश्मीरी महामृग ,चितरा, हिरण ,जंगली भेड़, खरगोश, तिब्बती बारहसिंघा ,याक ,हिम तेंदुआ ,गिलहरी, रिछ ,आईबैक्स ,कहीं-कहीं लाल पांडा, घने बालों वाली भेड़ ,तथा बकरियां पाई जाती हैं।

भारत में पाई जाने वाली वनस्पति

(5)मैंग्रोव वन-

यह वनस्पति तटवर्तीय क्षेत्रों में जहां जवाहर भाटा आते हैं वहां की सबसे महत्वपूर्ण वनस्पति है। मिट्टी और बालू इन तटो पर एकत्रित हो जाती हैं, घने मैंग्रोव एक प्रकार की वनस्पति है जिसमें पौधों की जड़े पानी में डूबी रहती है । गंगा, ब्रह्मपुत्र ,महानदी, गोदावरी ,कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टा भाग में यह वनस्पति मिलती है। गंगा ब्रह्मपुत्र डेल्टा में सुंदरी वृक्ष पाए जाते हैं जिनसे मजबूत लकड़ी प्राप्त होती हैं। नारियल, ताड़, क्योंड़ा व ऐंगोर के वृक्ष भी इन भागों में पाए जाते।

मैंग्रोव वन

क्षेत्र का रॉयल बंगाल टाइगर प्रसिद्ध जानवर है। इसके अतिरिक्त कछुए, मगरमच्छ ,घड़ियाल एवं कई प्रकार के सांप भी इन जंगलों में मिलते हैं।

भारत में पाई जाने वाली वनस्पति



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