भारतीय इतिहास के महान् सम्राट - चन्द्रगुप्त मौर्य। सम्राट अशोक। मौर्य साम्राज्य

मौर्य साम्राज्य - चन्द्रगुप्त मौर्य : (322 ई. पू.-298 ई. पू.)

चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म 345 ई. पू. में हुआ था| पाटलिपुत्र चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य की राजधानी थी।


चन्द्रगुप्त भारतीय इतिहास का प्रथम महान् सम्राट था। उसने अपने गुरू एवं मन्त्री विष्णुगुप्त, जिसे इतिहास में "चाणक्य' के नाम से आना जाता है, की सहायता से भारत को यूनानी शक्तियों से मुक्त कराया और मगध के नन्दवंशीय राजा घनानन्द को सिंहासन से पदच्युत कर मगध राज्य पर अपना अधिकार स्थापित किया। 

चन्द्रगुप्त मौर्य और चाणक्य


चाणक्य ने 322 ई. पू. में उसका राज्याभिषेक किया। 

यूनानी शासक सेल्युकस ने 305 ई. पू. में भारत पर आक्रमण किया था।

इस आक्रमण में चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्युकस को पराजित किया था। चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्युकस निकेटर की पुत्री हेलन से विवाह किया।

सेल्युकस ने मेगस्थनीज नामक अपना एक राजदूत चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा मेगस्थनीज ने भारत पर 'इंडिका' नामक एक पुस्तक की रचना की थी। 

जैन परम्पराओं के अनुसार अपने जीवन के अन्तिम दिनों में वह जैन हो गया तथा भद्रयाह की शिष्यता ग्रहण कर ली। 

चन्द्रगुप्त के शासनकाल के अन्त में मगध में 12 वर्षों का भीषण अकाल पड़ा। उसके पश्चात् यह भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला (मैसूर) में तपस्या करने चला गया। 

इसी स्थान पर उसने 298 ई. पू. के लगभग सल्लेरखना पद्धति द्वारा प्राण त्याग दिए। चन्द्रगुप्त को ग्रीक ग्रन्थों में '"सेन्ड्रोकोट्स' कहा जाता है।

विसाखदत्त ने 'मुद्राराक्षस' में उन स्थितियों का विशद् वर्णन किया है जिनके फलस्वरूप चाणक्य की सहायता से चन्द्रगुप्त ने नन्द वंश का समूलोच्छेद कर मगध साम्राज्य को हस्तगत किया।


बिन्दुसार 'अमित्रधात' (298 ई. पू. - 273 ई. पू.) 

चन्द्रगुप्त मौर्य के पश्चात उसका पुत्र बिन्दुसार मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर बैठा।

सीरिया के सम्राट एण्टियोकस प्रथम ने डायमेकस तथा मिस्र के शासक टॉलेमी फिलाडेल्फस ने डायोनियस को राजदूत के रूप में बिन्दुसार के राजदरबार में नियुक्त किया।


अशोक 'प्रियदर्शी' (273 - 237 ई. पू.)- 

बिन्दुसार का पुत्र अशोक 'देवानामप्रिय' व 'प्रियदर्शी" के नाम से भी जाना जाता था।

273 ई. पू. में राज्यारोहण के चार वर्ष के सत्ता संघर्ष के पश्चात् 269 ई. पु. में अशोक का औपचारिक राज्याभिषेक हुआ।

कलिंग का युद्ध : पूर्वी समुद्री तट पर बंगाल की खाड़ी के किनारे महानदी और गोदावरी नदियों के बीच के प्रदेश (उड़ीसा) को प्राचीन काल में कलिंग कहा गया है। 

अशोक ने अपने राज्चारोहण के अगले वर्ष में कलिंग का युद्ध किया था। कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक ने युद्ध नीति को सदैव के लिए त्याग दिया तथा दिग्विजय (भेरी घोष) के स्थान पर धम्म घोष (धम्म विजय) को अपनाया था।

अपने शासन के प्रारम्भिक वर्षों में अशोक बाहाण धर्म का अनुयायी था। वह शिव का उपासक था युद्ध के बाद यह बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया।  

अशोक के शासनकाल में पाटलिपुत्र में मोग्गलिप्ततिस्स नामक बोद्ध भिक्षु की अध्यक्षता में बौद्ध धर्म की तृतीय संगीति हुई। 

अशोक ने अपने पुत्र -पुत्री महेन्द्र व संघमि के नेतृत्व में एक मिशन बौद्ध धर्म के प्रसार हेतु पहली बार भारत के बाहर श्रीलंका भेजा।


232 पू. में अशोक की मृत्यु के बाद से ही मौर्य साम्राज्य के पतन की और बढ़ 

गया। 


अशोक के अधिकांश अभिलेख बाह्मी लिपि एवं प्राकृत भाषा में प्राप्त होते हैं। सामान्यतः अशोक के अभिलेखों में तीन लिपियों का प्रयोग किया गया है, ये लिपियाँ है-

1 - ब्राह्मी लिपि 

2 - खरोष्ठी लिपि- मनसेरा (हजारा-पाकिस्तान ) और शाह चाजगढो (पेशावर पाकिस्तान) अभिलेखों में प्राप्त (पक लिपि दाई से बाई और लिखी जाती है। 

3 - ग्रीक (यूनानी) एवं अरमाईक लिपि- "शार-ए- कुजा" अभिलेख से प्राप्त। 

यह कंधार में प्राप्त द्विभाषीय अभिलेख है।



अशोक के अभिलेख : अशोक पहला ऐसा शासक था जिसने अपने लिखित अभिलेख छोडे ।

(1) शिलालेख : पहाड़ों की शिलाओं पर लिखित अभिलेख। 

अशोक के 14 शिलालेख मिले है। प्रमुख शिलालेख निम्न हैं 

(i) भाब्रू शिलालेख- यह राजस्थान में बैराठ नामक स्थान से प्राप्त हुआ है। इसमें अशोक के बौद्ध धर्म के अनुयायों होने का स्पष्ट प्रमाण है। इसमें अशोक ने बुद्ध, धम्म तथा संघ का अभिवादन किया है।

 (ii) कलिंग शिलालेख-ये दो है, जो धौली तथा जोगढ़ नामक स्थानों पर मिले हैं ।

इनमें 13वाँ शिलालेख सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इसमें कालिंग विजय व अशोक के हृदय परिवर्तन का उल्लेख मिलता है।

(2) गुफा लेख- ये लेख बिहार स्थित गया के समीप 'बाराबार' की पहाड़ियों में स्थित चार गुफाओं में से तीन की दीवारों पर अंकित हैं। इन लेखों से अशोक की धार्मिक सहिष्णुता की जानकारी प्राप्त होती है। 

(3) तराई स्तम्भ लेख- ये लेख नेपाल की तराई में स्थित ' रूम्मिन देई' तथा 'निग्लीवा ' में पाए गए हैं। इससे ज्ञात होता है कि अशोक ने बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित पवित्र स्थानों की यात्रा की

(4) स्तम्भ लेख- ये निम्न हैं


(i) दिल्ली-टोपरा स्तम्भ लेख

(ii) मेरठ-दिल्ली स्तम्भ लेख

(iii) - इलाहाबाद स्तम्भ लेख

(iv) - अरराज स्तम्भ लेख

(v) - लौरिया-नन्दनगढ़ स्तम्भ लेख

(vi) - रामपुरवा स्तम्भ लेख 



(5) लघु स्तम्भ लेख- ये लेख एक प्रकार के राज्यादेश हैं। इनमें से दो साँची एवं सारनाथ के स्तम्भों पर खुद हुए हैं तथा दो प्रयाग में हैं।

-1750 ई. में टिफेनथैलर ने सर्वप्रथम दिल्ली में अशोक स्तम्भ का पता लगाया था । 

जेम्स प्रिंसिप ने 1857 ई. में सर्वप्रथम अशोक के अभिलेखों को पढा।


हमारे देश व राष्ट्रीय चिन्ह (अशोक स्तम्भ) अशोक के सारनाथ स्तम्भ के ऊपर निर्मित्त है। इसके फलक पर चार सिंह पीठ से पीठ सटाए हुए तथा चारों दिशाओं की ओर मुंह किए हुए दुढतापूर्व बैठे हैं। इसी पर चार पशुओं- गज, अश्व, बैल तथा सिंह को आकृतियाँ चलती हुई अवस्था में दिखाई गई हैं। महावंश में इन्हें 'चतुष्पद पंक्ति कहा गया है।

(6) अशोक के मास्को लघुशिलालख में अशोक का नाम 'अशोक देवानामप्रिय' मिलता है। 

अशोक का धम्म- अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान के लिए अशोक ने जिन आचारों की संहिता प्रस्तुत की उसे उसके अभिलेखों में 'धम्म' कहा माया है। अशोक का धम्म' बौद्ध धर्म न होकर धर्मों का सार था।


वृहद्रथ - 

मौर्य वंश का अन्तिम शासक वृहद्रथ था। इसकी पुष्टि बाणभट्ट के 'हर्षचरित' ग्रन्थ से होती है। 

185-184 ई.पू. में को हत्या उसके सेनापति पुष्पमित्र शुंग ने की तथा शुंग वंश की स्थापना की। इसके साथ ही मौर्य वंश का अन्त हो गया।

 मौर्य प्रशासन की जानकारी मुख्यत: तीन स्रोतों से होती है- 

1. कौटिल्य का अर्थशास्त्र,

2. मेगस्थनीज़ की इंडिका पूर्व 

3. अशोक के अभिलेख।


महत्त्वपूर्ण तथ्यः


मौर्य शासन कई विभागों में बँटा हुआ था, जिनको 'तीर्थ' कहते थे। प्रत्येक विभाग का एक सर्वोच्च पदाधिकारी होता था, जिसे 'अमात्य' कहते थे। 


समाहर्ता- कर संग्राहक, सन्निधाता - कोष संग्राहक थे। 

जूनागढ़ अभिलेख में वर्णित है कि सौराष्ट्र के कृषकों को सिंचाई की सुविधा देने के लिए चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रान्तीयः शासक पुष्यगुप्त वैश्य ने सुदर्शन झील बनवाई और उससे नहरें निकाली गई।

स्तूप- महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनकी अस्थियों को 8 भागों में बाँटकर उत पर जो समाधियाँ बनवाई गई, सामान्यतः इन्हीं को स्तूप कहा जाता है। 

सर्वप्रथम विश्व को जीओ और जीने दो' का पाठ अशोक ने पढ़ाया था। 

'लौह विजय के सिद्धान्त' का प्रतिपादक 'कौटिल्य' था।


मौर्य साम्राज्य में शहर के प्रशासन हेतु नगर निगम जैसी व्यवस्था थी। 

मेगस्थनीज के अनुसार पाटलिपुत्र के प्रबंधन हेतु छ: समितियाँ थी और प्रत्येक में पाँच सदस्य थे।


मौर्य साम्राज्य की सेना प्राचीन भारत में विशालतम थी।

चीनी सम्राट 'शीह-हुआंगती' (247-210 ई. पू.) ने चीन की महादीवार बनवाई थी।



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